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लघुकथा : उसूल - डॉ. सत्येंद्र सिंह , पुणे महाराष्ट्र


 लघुकथा

                        उसूल

        

      माधव और रघु दोनों बचपन से मित्र हैं। दोनों अपने अपने काम में माहिर। दोनों साथ साथ पढे। माधव ने आईटीआई कर लिया और रघु ने प्लंबिंग का काम सीख लिया। दोनों की पारिवारिक परिस्थितियों ने उच्च शिक्षा ग्रहण न करने दी परंतु दोनों मेहनती थे और अपनी मेहनत की कमाई से खुश भी। दोनों का विवाह हो गया तो गांव से मुंबई आ गए। 

      माधव ने मेकेनिकल इंजीनियरिंग में आईटीआई किया था सो उसे काम मिलने में दिक्कत नहीं हुई। रघु को शुरू में काम तलाशने में थोड़ी परेशानी तो हुई लेकिन प्लम्बिंग में होशियार होने के कारण जहाँ काम करता वहाँ पसंद किया जाता और जिन-जिनके यहाँ काम करता वे लोग जरूरत पड़ने पर उसी को बुलाते और अपने मित्रो के यहाँ भी भेजते। इस प्रकार रघु की आमदनी भी ठीक ठाक थी। दोनों अपने अपने परिवार के साथ कल्याण में एक ही  बिल्डिंग में रहते थे । 

      बच्चों की पढ़ाई और शादी ब्याह की जिम्मेदारी आने से आमदनी बढाने और आवास की अच्छी व्यवस्था पर विचार करने लगे। रघु को अपने एक मित्र के जरिए अंबरनाथ में कम दाम पर एक फ्लैट मिल गया और उसी के नीचे एक दूकान । दूकान किराए पर ले ली और हार्डवेयर की दूकान खोल ली। प्लंबिंग का काम तो चल ही रहा था। अब उसे बड़ी बिल्डिंग में प्लम्बिंग का ठेके भी मिलने लगे । 

     माधव कल्याण में ही रह गए।  वे मुंबई में एक कंपनी में काम करते थे और कल्याण से मुंबई अप डाउन करते थे। उनकी तीन बेटी और एक बेटा था। एक बेटी का विवाह हो गया परन्तु छोटी बेटी और बेटा पढाई कर रहे थे। रघु के तीन बेटे थे और उनमें से दो हाईस्कूल करने के बाद उसके साथ ही काम करने लगे। इस तरह उसकी आमदनी अच्छी होने लगी। अंबरनाथ के बाहरी इलाके में खाली पड़ी जमीन पर प्लॉटिंग हो रही थी तो रघु को वहाँ एक प्लॉट मिल गया और फ्लैट बेचकर एक बंगला बना लिया। 

       रघु के बंगले के बाजू में एक प्लॉट था जो बिकाऊ था। उसने सोचा क्यों न माधव को दिलवा दिया जाए। माधव से बात की तो वह तैयार हो गया क्योंकि कल्याण वाला फ्लैट छोटा पड़ रहा था इसलिए उसने हाँ कर दिया। इधर रघु ने प्लॉटहोल्डर से बात की तो प्लॉटहोल्डर माधव को बेचने के लिए तैयार हो गया। रघु बहुत प्रसन्न हुआ और चेहरे पर अनोखे भाव लाते हुए प्लॉटहोल्डर से कहने लगा कि माधव उसके बचपन का दोस्त है और उससे वह कुछ कह नहीं सकता इसलिए मेरा भी ख्याल रखना। प्लॉटहोल्डर ने सहज भाव से उसका चेहरा देखते 

हुए कहा - दो पर्सेंट न! रघु ने धीरे से हाँ में सिर हिलाया।

प्लॉटहोल्डर ने हँसते हुए कहा कि अरे भाई वह तो आज का उसूल है, चिंता मत करो मिल जाएगा।

 -  डॉ. सत्येंद्र सिंह

      पुणे महाराष्ट्र

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

1 Comments

  1. ऐसी घटनाओं से साहित्य में समाज का प्रतिबिंब दिखाया जाता है। सच्चाई को परखकर लिखते रहिए। शुभ दिन!💐

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