ad

अंतरराष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच द्वारा आयोजित छठे काव्य चौपाल आयोजित


 अंतरराष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच द्वारा आयोजित छठे काव्य चौपाल आयोजित

भोपाल। अंतरराष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच द्वारा आयोजित छठे काव्य चौपाल में कल,२८ मार्च की संध्या कविताओं की अविरल गंगा बही। एल्डर होम्स के मुख्य हाल में आयोजित  कार्यक्रम का विषय ‘होली’ और ‘वसंत’ था। इस कार्यक्रम की विशेषता यह  है कि चौपाल की जुटान की तरह इस कार्यक्रम में सभी मिल बैठकर अनौपचारिक माहौल में कविता पाठ करते हैं

 कार्यक्रम की शुरुआत में वरिष्ठ लेखिका उषा सक्सेना ने  होली की अत्यंत मनोरम कविता सुनाईं…

वसन बासंती पहन कर धरा ने जब  ली अंगड़ाई

छागई उस पर यौवन की अरुणिम तरुण तरुणाई ।

फागुन की फागुनी बयार  संग लाई रंगों की फुहार

पहले टीका लगा भाल परगालों मे मल रहे गुलाल ।

कवयित्री शेफालिका श्रीवास्तव‌‌  ने कृष्ण और राधा के होली रास का मनभावन गीत प्रस्तुत किया।

 होली में भींजे राधा प्यारी,

वे ठाड़ी वृष भान दुलारी । 

वहीं कवयित्री मधुलिका सक्सेना के सुमधुर कंठ से होली गीत की प्रस्तुति इस प्रकार थी …

आज सखियाँ नहीं मोरे संग में 

अकेली मुझे घेर लई मधुबन में 

कन्हैया जू ने , घेर लई मधुबन में 

पहली पिचकारी मेरे माथे बिच मारी 

पहली पिचकारी होरी हाँ…

 लेखक, कवि और आलोचक गोकुल सोनी ने हास्य रस से डूबी कविता सुनाई… 

लग रहे हैं सन्यासी फूलकर पलास आज।

कम ने कमान तान वाण जो चलाए हैं।

मन की चंचलता और चाहत चौगुनी ही।

हृदय भावनाओं के ज्वार उमड़ आए है।

 गजलकार डॉ राजश्री रावत "राज" के मुक्तक काबिले दाद थे। तालियां बज उठीं जब उन्होंने कहा…

जुबां मीठी, हँसी चेहरा मगर दिल आग होता है 

जहां चंदन महकता है वहींं तो नाग होता है ।।

यह गुलमोहर पलाशो आम के फूलों से जा पूछो 

न बौराए अगर दिल "राज" तो क्या फाग होता है ।।

 प्रसिद्ध व्यंग्य कवि राजेन्द्र गट्टानी की‌‌ व्यंग्य और हास्य रस से सराबोर रचना तीखेपन से भरी हुई थी..

दुनिया की ठोकर खा खा कर रंगत उड़ गई चेहरे की

घंटे - दो घंटे की लाली, अब मुंह पर पुतवाएं क्यों ?

हिरणाकुश से हाथ मिलाकर,  नरसिंह से प्रह्लाद कहे

हम आपस में सलट रहे हैं, आप बीच में आएं क्यों ?

कवयित्री प्रियंका श्रीवास्तव की पंक्तियां सोचने पर मजबूर करती रहीं…

वेदना पहुंची चरम पर, 

तब सुखद यह काल आया,

होलिका जलती रही, 

फिर बच निकल आया प्रह्लाद आया।

 वरिष्ठ साहित्यकार और मंच की संस्थापक संतोष श्रीवास्तव जी ने अत्यंत विचारणीय कविता पढ़ी। उन्होंने कहा..

रंग न जाने हिंदू मुस्लिम 

रंग न जाने काबा काशी

 रंग उतर आते जब दिल में

 रूहानी हो जाती होली

सरोज लता सोनी जी  ने सुन्दर स्वर में कविता पाठ किया। उनकी कविता की पंक्तियां थीं -

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि पर,

नव संवत्सर आता है।

 तब आर्यावर्त यह देश हमारा,

 नूतन वर्ष मनाता है ।।

कवयित्री और लेखिका रानी सुमिता ने अपनी कविता से सोचने पर मजबूर किया। उन्होंने कहा …

पकवानों के उन ढ़ेरों से

तुम्हारे चूल्हे की मिट्टी की 

बाट जोहती सोंधी महक 

ज्यादा भली लगी मुझे 

हां, तुम थी

इस फागुन की मेरी नायिका!

होली के बाद होली पर पढ़ी गईं कविताएं  रंग-अबीर के उड़ने का अहसास कराती रहीं। वातावरण ने फाग ओढ़ लिया हो मानो। मन जुड़ाने वाली अनोखी कविताई रंगों की इस अनोखी बारिश ने  सभी को जेहनी तौर पर भिगोया।

अत्यंत सराहनीय इस कार्यक्रम का संचालन रानी सुमिता ने किया।



देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

Post a Comment

Previous Post Next Post