होली में नशाखोरी और अश्लीलता
कौन इस बात से सहमत नहीं होगा कि होली में नशा खोरी और अश्लीलता इस पर्व की मूल भावना के विपरीत है।
होली ऐसे समय आती है कि अपने साथ ही ,नशा सा लाती है। होली में हुड़दंग है,बहु विधि इसके रंग हैं।बसंत ऋतु, मन के सिर चढ़ बोलती है,फूलों के रंग,तन मन पर उतर आते हैं,।टेसू के फूलों से रंग बनाए जाते थे,हम छोटे थे।आम की बौर की मादक सुगंध का अपना ही नशा घुलता है पवन में इस होली के समय,पकवानों की मिठास और उनकी सुबास का नशा क्या कम है जो अन्य नशीले पदार्थों का नशा ढूंढते हैं कुछ लोग।देवर ,भाभी जैसे पवित्र रिश्तों का नशा या उन्माद, होली में परिवारों में रंग की महत्ता दिखाती है।
गलत नही लिखा है गीतकार ने कि *होली के दिन दिल मिल जाते हैं,रंगों में रंग मिल जाते हैं*,सजनी से मिलने सजना ,दूर देस से इस दिन जरूर पहुंच जाते रहे हैं।
।होली में ठंडाई और भांग का थोड़ा सेवन परिवारों में स्वीकार होता रहा है।हम होली के वीभत्स रूप से इस जमाने में दो चार हो रहे हैं,शराब का नशा प्रचलन में आ जाना,केमिकल्स के नुकसान पहुंचाने वाले रंग,अभद्रता, गाली गलौज, मार पीट,छेड़छाड़,हिंसा,होली के बहाने आज कल ,घुस आई है होली में।
ये कहां आ गए हम ।होली वीभत्स और डरावनी न हो इसके लिए हम सभी को आगे बढ़कर,युवाओं और बच्चों को सीख देने की आवश्यकता है अब।
कहां गए वे फगुआ में गाए जाने वाले गीत।याद कीजिए गांवों में हमारे आंगन में गांव वाले लोग, फाग के गीत गाने आते थे,उन पर हम सभी,और घर की महिलाएं भी बाल्टी से या लोटों से रंग डालती थीं,तब वे खुश होकर और भी होली गीत गाते थे,घर में बनी गुझिया,या लड्डू,बताशे, गरी,छुहारे,और किशमिश से उनका मुंह मीठा किया जाता था।कितनी सुखदाई,शालीन और तन मन रंग देने वाली होली होती थी।
आज भी हम ये होली का रंगोत्सव,उमंग ,रंग,मिष्ठान सहित मनाते है,हां कुछ अतिउत्साही लोग जब नशे के वशीभूत हो रंग में भंग डालते हैं,तो मन दुखी हो जाता है।
होली में मादक पदार्थों का नशे के लिए प्रयोग, हमारे संस्कारों में नहीं था,न ये होना चाहिए,होली मन को रंग जाए,तब ही तो होली है,होली दिलों को मिलाए तभी तो होली है,होली दोस्त बनाए और बढ़ाए तभी तो होली है।
मन कहता है
*आ मेरे हम जोली आ
मिलकर खेलें होली आ
कुछ तू रंग जा मेरे रंग में
कुछ उठें तरंगें जीवन में
आ दोस्तों की टोली आ
होली आई हमजोली आ*
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र , भोपाल