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कहानी : हॉस्टल का राज - अमन कुमार,सागर




कहानी : हॉस्टल का राज - अमन कुमार,सागर

आज मैं और मेरे मित्र बहुत खुश थे क्योंकि आज शुक्रवार था और आज से लेकर अगले चार दिन तक हमारे विश्वविद्यालय में छुट्टी थी ।मैं और मेरे मित्र उत्सव राज,आलोक, कृष्णा,प्रिंस , सूरजकांत और अकुंश सभी ने  मिलकर कल राहतगढ़ घूमने जाने की योजना बनाई और फिर हमलोग अपने –आपने कमरे में सोने चले गए। मुझे याद आया कि जो मां ने नई वाली कमीज़ दी थी वहीं कल पहनकर राहतगढ़ घूमने जाऊंगा। मैने खाना खाया और अपने बिस्तर पर सोने चला गया ।कुछ देर आंखे बंद  करने के बाद भी नींद नहीं आ रही थी । मन में  उत्साह थी कि  कल झरना घूमने  जायेंगे ,वहां हमलोग नहाएंगे, लिट्टी– चोखा बनाएंगे , खायेंगे और बहुत मज़े करेंगे । रात के लगभग साढ़े ग्यारह बज गए थे ,कल सवेरे उठना भी था इसलिए मैं सो गया । सुबह उत्साह के कारण मैं छह बजे ही उठ गया । सबसे पहले मैं अपने मित्र उत्सव को उठाने गया ।जैसे ही मैं  उसके कमरे में गया तो देखा कृष्णा जग चुका था लेकिन अब तक उत्सव सो रहा था । मैं जैसे ही उसे उठाने गया वो चिल्ला उठा और बहुत डरा,सहमा–सा था । 
मैने कारण जानने की कोशिश की लेकिन वो इतना सहमा था कि मेरी हिम्मत नहीं हुई ,मैं उसे छोड़ दिया और मैं घबराते हुए,
कृष्णा से पूछा कि  "क्या हुआ है ?"
कृष्णा ने बताया कि" कल उत्सव,आलोक और प्रिंस तीनों रूम नंबर अठारह में  बैठे थे कि करीब साढ़े बारह बजे।उत्सव ,आलोक और प्रिंस तीनों रूम नंबर अठारह से निकलकर  बाथरूम गए ।जब तीनों बाथरूम से लौट कर आलोक के कमरे में आ रहे थे कि उसी बीच सीढ़ी के नीचे  वाले ग्रिल के बाहर उत्सव ने भूत देखा। "
"मैने कहा पागल हो क्या भूत कहां से आएगा ? उसे कोई भ्रम हुआ होगा ?"
"कृष्णा ने कहा कि उत्सव और आलोक और प्रिंस तीनों ने अपने आंखों से देखा है और देखने के बाद तीनों बहुत डर गए और बहुत ही तेजी से भागते हुए रूम नंबर अठारह में गए।
उसके बाद तीनों अपना पैर तक बेड से नीचे नहीं रख रहे थे । उन्हें खिड़की के बाहर भी दिख रहा था लेकिन हर्षित को नहीं दिख रहा था ।"
मैंने ये सब सुनने के बाद थोड़ी गहरी सांस ली और बात  आराम से जाकर उत्सव से पूछा क्योंकि मुझे विश्वास नहीं हो रहा था ।
उत्सव से बोला  "क्या उत्सव आपने रात को भूत देखा था ?"
उत्सव ने कहां –"हां अमन मैं जब बाथरूम से करीब साढ़े बारह बजे आलोक के रूम में जा रहा था कि ग्रिल के बाहर मैने  करीब आठ फिट लम्बा सफेद कपड़ा पहने एक लंगड़ाकर चलते हुए किसी अजीब आकृति को देखा जो न तो इंसान ही था और न ही कोई जानवर ।"
मैने कहा , "शायद आपको कोई भ्रम हुआ हो । आज तक किसी ने यहां भूत नहीं देखा है और हमलोग भी इतने समय से है कभी ऐसा नहीं हुआ ?" 
उत्सव ने कहा– "सच कह रहा हूं अमन ।जब आलोक के रूम में गया तो खड़की के बाहर भी हम तीनों ने उसे देखा । एक दिन तो रात में खिड़की से बाहर बच्चे के रोने की आवाज आ रही थी ।उसे आलोक और अंकुश ने भी सुना था ।"
मैने कहा,"हो सकता है ,जो अकाल मृत्यु मरते है उनकी आत्मा भटकती है ।" फिर मैं वहां से चला गया और घूमने जाने की बात नहीं दोहराई। मेरी हिम्मत नहीं हुई कि मैं कल की योजना के बारे में कुछ कहूं ।
मैं खाना खा–पीकर जब बैठा तब मैने आलोक के रूममेट हर्षित को फोन किया पूरी बात जानने के लिए। थोड़ी देर बाद हर्षित  आ गया और मैने पूछा कि "आखिर कल रात को क्या हुआ था ?"
हर्षित भी वही बात दोहराई जो उत्सव और कृष्णा कह रहा था ।हर्षित बोला कि " प्रिंस भी बहुत डरा हुआ था, कल डर के कारण किसी को नींद नहीं आई जब सुबह  चार बजा, तब मैं और आलोक , प्रिंस को उसके रूम में छोड़ने गए तब किसी की तेज से चलने की थप –थप आवाज आ रही थी और मेस का भी गेट खुला हुआ था जो हमेशा सात बाजे  तक बंद रहता था ।"
फिर मैं और आलोक प्रिंस को उसके रूम में छोड़कर आपने कमरे में चला आया। "
ये सब सुनकर मैं भी बहुत डर गया था क्योंकि मैने भी अपने नाना और दीदी से सुना था कि उन्होंने भूत , चुड़ैल देखा था । मुझे फिर  दोपहर में नींद आ गई मैं सो गया ।जब शाम को छह बजे उठा तो सूरजकांत को फोन किया और उसे सारी बात बताई ।ये सुन तुंरत वो मेरे  रूम में आ गया और हमारी बाते होने लगी ।बात –बात में सूरजकांत ने मुझे एक हॉस्टल का एक राज बताया ।
उसने कहा –" जानते हो अमन ,शिवम भईया और मेरे  शशीकांत भईया बता रहे थे कि ऊपर रूम न० 193 में एक दो साल पहले एक लड़का फंसी लगाकर मर गया था और उनकी मृत्यु के बाद रूम आज तक बंद है । वो कमरा किसी को नहीं दी जाती है ,आज भी उस कमरे से दरवाजे पीटने की आवाज आती है । "
मैंने कहा "ये कब की बात है ? और उसे किसी ने देखा है ?"
सूरजकांत बोला–"हां कई बार शिवम भईया, हिमांशु भईया ने उसे छत के घेरे  पर आधी रात को चलते देखा है ।"
 ये सब सुनने के बाद मैने कहा – हो सकता है हमारा हॉस्टल  जंगल के बीच है और इतना बड़ा भी है । ये बात सुनने के बाद और मैं और भी डर गया ।
बहुत ही तेजी से ये बात पूरे हॉस्टल में फैल गई। सभी अब दस बजे तक आपने –आपने रूम में बंद हो जाते । दो दिन बाद ऐसे हुआ कि कोई सोच नहीं सकता था ।
 सुबह जब मैं कैंटीन से नाश्ता करके आ रहा था कि  मैने उत्सव के रूम के बाहर देखा कोई काजल,लाल सिंदूर और आटे से टोटका कर रखा था । मैने तुरंत कृष्णा और उत्सव को बताया उसे देख वो भी आश्चर्यचकित हो गए और सोचने लगे कि ये कौन कर सकता है ?
फिर कुछ देर में सभी मित्र वहां आ गाएं और सभी की निगाहें एक –दूसरे पर थी कि कोई मजाक तो नहीं कर रहा है । किसी पर शक करने का कोई प्रमाण नहीं मिला ।हमलोग और डर गए कि उत्सव के साथ ऐसा क्यों और कौन कर  रहा है ? ये राज और गहरा होता जा रहा था,पता नहीं चल रहा था कि सच क्या है ? पूरे हॉस्टल में डर का माहौल बन गया था,डर के कारण हमलोग दस बजते– बजते सो जातें थे ।
 रविवार को मैं और मुन्ना दोनों रात को नौ बजे इतिहास की कुछ चर्चा करने के लिए दूसरे मंजिल पर जा रहा था क्योंकि नीचे बहुत ही शोरगुल हो रही थी और सोमवार को हमारा इतिहास का पेपर भी था और चलते –चलते कब हम दोनों तीसरे मंजिल पर पहुंच गए पता ही नहीं चला कि वहां जाने के दौरान हमें आभास हुआ कि कोई हमारे पीछे आ रहा है पर जब पीछे मुड़कर देखा तब कोई नहीं था । हम दोनों को लगा कि कोई भ्रम हुई है हमलोग ऊपर जाकर बैठ गए और  बाते करने लगें । लगभग 10 मिनट बाद उस बिंग से बहुत ही डरावनी आवाज सुनाई दी साथ ही वो बिंग बहुत ही सुनसान दिख रही थी। हम दोनो ये देख  बहुत डर गए और तुरन्त ही वहां से नीचे चले आए। अब हिम्मत नहीं थी कि ऊपर जाएं और हम दोनों आपने–आपने कमरे में जाकर सो गए । अब हमारी चार दिनों की छुट्टी खत्म हो गई थी । सोमवार को सुबह मैं जल्दी –जल्दी तैयार हुआ और अपनी पहली कक्षा एजुकेशन के लिए निकल गया । आज" फ्रायड का मनोवैज्ञानिक सिद्धांत "पढ़ाई होनी थी । अभिषेक सर ने बताया–" कि आत्मा,भूत आदि कुछ नहीं होते हैं वो हमारे मन की ही एक उपज है । "
मैने कहा –"सर भगवान हो सकते है तो आत्म क्यों नहीं ।"
सर ने बोला –"तुमने भगवान को देखा है ?"
मैने कहा–"  जी नहीं, मैने भगवान को नहीं देखा है ।"
बहुत समझते हुए सर बोले –"डर लगना ,भूत दिखना ये सब हमारे ही विचार होते है क्योंकि जब हमारा अचेतन मन , चेतन मन पर हावी हो जाता है तब जो हम बहुत देर तक सोचते रहते है  या किसी से सुनते हैं ,वही हमें दिखाई देता है । "
हमे आज पता चला कि ये बात है ,तब मैने इसे और अच्छा से जानने के लिए रूम पर आकर उसकी गहरी जानकारी प्राप्त की । मुझे विश्वास हुआ कि असल बात ये है । इतने दिन से जो हम डरते थे या सुनते थे वो इस प्रकार काल्पनिक थी । अब मुझे हॉस्टल में हो रहे घटनाओं को जानने की उत्सुकता हुई कि असल बात क्या है? मैने हर्षित को फोन किया और उसे अपने कमरे में  बुलाया उससे बहुत पूछने पर उसने बताया कि
" जिस दिन उत्सव और आलोक को भूत दिखा था , उसी रात वो तीनों ” भूतिया फिल्म" देख रहे थे , शायद उसी का नतीजा हो ?"
फिर वो अपने कमरे में चला गया। अब  हॉस्टल का राज जानने  के लिए हमारे कुछ मित्र जैसे –अभिषेक,हर्षित, अंकुश सभी रात को एक बजे उन सभी जगहों पर गए जहां डर लगता था  जो जगह डरावनी थी। पर उन्हें वहां कुछ नहीं दिखा । सुबह मैंने जब उत्सव से पूछा तब " उसने भी स्वीकार कर लिया कि वो शायद उसका भ्रम था ।"
ये बात सुनने के बाद मैंने पहले एक गहरी सांस ली और सर की बात याद की । अब जाना कि आत्मा ,भूत ,प्रेत  कुछ नहीं होता है । जब  हमारा अचेतन मन (जहां कुछ देखी या सुनी बाते याद बनी रहती है),चेतन मन(जिसे हम सही विचार कर पाते है) पर हावी हो जाती है, तब ये सब कल्पनाएं ‘भ्रम’ के रूप में दिखती है और हमें डर लगता हैं । अब हॉस्टल का राज खत्म हो ही गया और ये सिद्ध हो गया कि ये सब हमारी मन की उपज थी जो लम्बे समय तक हमें भ्रमित कर रखी थी। 
                      
अमन कुमार,सागर
देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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