प्रसंगवश – 21 मई: राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस
आतंक के विरुद्ध अडिग संकल्प: राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस
[एक खून से लिखी गई तारीख़, जो शांति की इबारत बनी]
21 मई का दिन भारत के इतिहास में एक ऐसी तारीख है, जो दुख की स्याही से लिखी गई, मगर शांति, एकता और आतंकवाद के खिलाफ अडिग संकल्प की ज्योति जलाती है। 1991 में तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में हुए एक क्रूर आत्मघाती हमले ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जैसे दूरदर्शी नेता को हमसे छीन लिया। इस हृदयविदारक त्रासदी ने न केवल एक परिवार को तोड़ा, बल्कि आतंकवाद की विनाशकारी शक्ति को उजागर कर राष्ट्र की प्रगति और शांति को चुनौती दी। इस दुखद स्मृति को जीवित रखने और आतंकवाद के वीभत्स चेहरे से समाज को आगाह करने के लिए भारत सरकार ने इस दिन को राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस के रूप में मनाने का संकल्प लिया। यह दिन हमें अतीत के ज़ख्मों को सहलाने का मौका देता है, साथ ही एकजुट होकर वैचारिक और सामाजिक स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा देता है, ताकि हम एक सुरक्षित, समृद्ध और समावेशी भारत का स्वप्न साकार कर सकें।
आतंकवाद एक ऐसी वैश्विक बीमारी है, जो न तो सीमाओं को मानती है, न ही धर्म, जाति या संस्कृति को। यह केवल भय, हिंसा और अस्थिरता का जाल बुनता है, जो समाज की नींव को कमजोर करता है। भारत जैसे विविधतापूर्ण और लोकतांत्रिक देश के लिए आतंकवाद एक ऐसी चुनौती रहा है, जिसने बार-बार इसकी एकता और अखंडता को परखा है। पंजाब में खालिस्तानी उग्रवाद, जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी गतिविधियाँ, उत्तर-पूर्वी राज्यों में विद्रोही आंदोलन और नक्सलवाद के रूप में आतंकवाद ने विभिन्न रूपों में देश को आघात पहुँचाया है। ये सभी गतिविधियाँ न केवल निर्दोष लोगों की जान लेती हैं, बल्कि सामाजिक समरसता, आर्थिक प्रगति और राष्ट्रीय एकता को भी चोट पहुँचाती हैं। आतंकवाद का यह विषैला प्रभाव समाज में अविश्वास और भय का माहौल पैदा करता है, जिससे देश का विकास अवरुद्ध होता है।
राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस हमें अतीत की त्रासदियों से सबक लेकर भविष्य को सुरक्षित बनाने की प्रेरणा देता है। यह दिन सिखाता है कि आतंकवाद के खिलाफ जंग केवल सुरक्षा बलों की नहीं, बल्कि हर नागरिक की साझा जिम्मेदारी है। स्कूलों, कॉलेजों, कार्यालयों और सामाजिक संगठनों में आयोजित शपथ समारोह, जागरूकता अभियान, सेमिनार और रैलियाँ हमें हिंसा का विरोध करने, सांप्रदायिक सौहार्द और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने का संकल्प दिलाती हैं। यह शपथ महज औपचारिकता नहीं, बल्कि एक गहरी नैतिक प्रतिबद्धता है, जो हमें विचारों, संवाद और एकजुटता के साथ आतंकवाद का मुकाबला करने का आह्वान करती है।
राजीव गांधी की हत्या एक ऐसी घटना थी, जिसने भारत के आधुनिकीकरण और प्रगति के स्वप्न को गहरा आघात पहुँचाया। वे एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने सूचना प्रौद्योगिकी और संचार क्रांति के माध्यम से भारत को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दिलाने का सपना देखा था। लेकिन एक आत्मघाती हमले ने न केवल उनके जीवन को समाप्त किया, बल्कि करोड़ों भारतीयों की आशाओं को भी झटका दिया। यह घटना हमें यह सिखाती है कि आतंकवाद केवल शारीरिक हिंसा नहीं, बल्कि एक ऐसी मानसिकता है, जो समाज को तोड़ने और प्रगति को रोकने का काम करती है। उनकी मृत्यु ने यह स्पष्ट किया कि आतंकवाद का दंश कितना गहरा और अमानवीय हो सकता है।
डिजिटल युग में आतंकवाद ने नई चालें रची हैं, जहाँ सोशल मीडिया और इंटरनेट के ज़रिए कट्टरपंथी विचारधाराएँ और भ्रामक प्रचार पंख फैलाते हैं। आतंकवादी संगठन युवा मनों को भटकाने की साजिश रचते हैं, उन्हें हिंसा और नफरत की अंधेरी राह पर धकेलने की कोशिश करते हैं। राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस हमें जगा देता है कि हमारी युवा पीढ़ी को वैचारिक और नैतिक बल से लैस करना होगा। हमें उन्हें सहिष्णुता, संवाद और विविधता के सम्मान जैसे मूल्यों का पाठ पढ़ाना होगा। माता-पिता, शिक्षक और समुदाय के अगुवाओं का यह दायित्व है कि वे युवाओं को हिंसा और असहिष्णुता की ज़हरीली विचारधाराओं से बचाएँ। हम एक ऐसा समाज रचें, जहाँ संवाद की मशाल जलती हो और सह-अस्तित्व की सुगंध बिखरे, ताकि आतंकवाद की काली छाया को हमेशा के लिए मिटाया जा सके।
भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को स्वतंत्रता, समानता और अभिव्यक्ति की आज़ादी का अमूल्य अधिकार देता है, पर ये अधिकार तभी जीवंत हैं, जब समाज में शांति और सुव्यवस्था का प्रकाश हो। आतंकवाद इन अधिकारों को कुचलकर भय का साम्राज्य स्थापित करता है। राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस हमें अपने शहीदों को नमन करने और यह दृढ़ संकल्प लेने की प्रेरणा देता है कि हम आतंकवाद को किसी भी रूप में पनपने नहीं देंगे। सरकार ने कठोर कानून, आधुनिक सुरक्षा उपायों और वैश्विक सहयोग से इस चुनौती का मुकाबला किया है, लेकिन असली शक्ति हमारी सामूहिक जागरूकता में है। हमें अपने आसपास के माहौल पर नज़र रखनी होगी, संदिग्ध गतिविधियों की सूचना देनी होगी और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना होगा।
21 मई का दिन केवल एक स्मृति का दिन नहीं, बल्कि एक चेतना और संकल्प का दिन है। यह हमें यह सिखाता है कि आतंकवाद के खिलाफ युद्ध केवल सीमाओं पर नहीं, बल्कि हमारे घरों, स्कूलों, कार्यस्थलों और समाज में लड़ा जाना है। यह एक वैचारिक युद्ध है, जिसमें हमें अपने मूल्यों, एकता और सहानुभूति को हथियार बनाना होगा। हमें अपने बच्चों को यह सिखाना होगा कि हिंसा और कट्टरता किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। हमें उन्हें जिम्मेदार और संवेदनशील नागरिक बनाना होगा, जो अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने कर्तव्यों को भी समझें।
राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस हमें एक ऐसे भारत की रचना करने की प्रेरणा देता है, जहाँ भय की छाया नहीं, बल्कि विश्वास और प्रेम का उजाला हो। यह दिन उन वीर शहीदों को श्रद्धांजलि है, जिन्होंने देश की एकता और अखंडता के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया। यह हमें सिखाता है कि शांति और प्रगति का रास्ता चुनौतीपूर्ण हो सकता है, पर असंभव नहीं। हर छोटा प्रयास—चाहे वह पड़ोस में सौहार्द कायम करना हो, भ्रामक प्रचार का डटकर मुकाबला करना हो, या समाज में जागरूकता का दीप जलाना हो—विशाल परिवर्तन की नींव रखता है। आइए, हम संकल्प लें कि आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होकर हम एक सुरक्षित, समृद्ध और स्वप्निल भारत का निर्माण करेंगे, जहाँ हर नागरिक बिना डर के अपने सपनों को साकार कर सके। यही हमारी अटूट ताकत है, जो आतंकवाद के अंधेरे को हराने का संबल देगी।
- प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)