[प्रसंगवश - 1 से 7 अगस्त: विश्व स्तनपान सप्ताह]
स्तनपान सप्ताह: संकोच तोड़ने और सम्मान जोड़ने का अभियान
[हर मां का अधिकार, हर शिशु का जीवनाधिकार – स्तनपान]
स्तनपान केवल एक प्राकृतिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि मां और शिशु के बीच एक अटूट बंधन, स्वास्थ्य का आधार और भावनात्मक जुड़ाव का सबसे प्राकृतिक स्रोत है। हर साल 1 से 7 अगस्त तक मनाया जाने वाला विश्व स्तनपान सप्ताह इस महत्व को रेखांकित करता है, जिसका उद्देश्य वैश्विक स्तर पर स्तनपान के लाभों को प्रचारित करना, भ्रांतियों को दूर करना और समाज के हर वर्ग को इसके प्रति जागरूक करना है। यह सप्ताह केवल मां और शिशु तक सीमित नहीं, बल्कि परिवार, समुदाय, कार्यस्थल और नीति-निर्माताओं को उनकी जिम्मेदारी का एहसास कराता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ के अनुसार, जन्म के पहले घंटे में शिशु को मां का पहला दूध, यानी कोलोस्ट्रम, देना अनिवार्य है। यह गाढ़ा, पीला दूध शिशु की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने वाला अमृत है, जिसमें एंटीबॉडीज और पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं। डब्ल्यूएचओ की सिफारिश है कि पहले छह महीने तक शिशु को केवल मां का दूध दिया जाए और फिर दो साल तक ऊपरी आहार के साथ स्तनपान जारी रखा जाए। यह शिशु के शारीरिक, मानसिक और संज्ञानात्मक विकास के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
स्तनपान शिशु को संपूर्ण पोषण प्रदान करता है और कई जानलेवा बीमारियों से सुरक्षा देता है। शोध बताते हैं कि मां के दूध में मौजूद एंटीबॉडीज शिशु को डायरिया, निमोनिया, श्वसन संक्रमण और यहां तक कि दीर्घकालिक बीमारियों जैसे मधुमेह और मोटापे से बचाते हैं। एक अध्ययन के अनुसार, स्तनपान करने वाले बच्चों का आईक्यू औसतन 3-7 अंक अधिक होता है, जो उनके संज्ञानात्मक विकास में महत्वपूर्ण योगदान देता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, यदि वैश्विक स्तर पर छह महीने तक विशेष स्तनपान को बढ़ावा दिया जाए, तो हर साल 8 लाख से अधिक बच्चों की जान बचाई जा सकती है। इसके अलावा, स्तनपान शिशु में एलर्जी, अस्थमा और आंतों के रोगों के जोखिम को भी कम करता है।
मां के लिए भी स्तनपान अनेक लाभकारी है। यह प्रसवोत्तर रक्तस्राव को नियंत्रित करने और गर्भाशय को सामान्य स्थिति में लाने में मदद करता है। शोधों के अनुसार, स्तनपान करने वाली माताओं में स्तन कैंसर का जोखिम 25% तक और डिम्बग्रंथि कैंसर का जोखिम 30% तक कम हो सकता है। इसके अलावा, यह टाइप 2 मधुमेह और हृदय रोगों से भी बचाव करता है। स्तनपान एक प्राकृतिक गर्भनिरोधक के रूप में भी कार्य करता है, जिसे लैक्टेशनल एमेनोरिया मेथड कहा जाता है, हालांकि यह पूरी तरह विश्वसनीय नहीं है। भावनात्मक दृष्टिकोण से, स्तनपान मां और शिशु के बीच गहरा जुड़ाव बनाता है, जो मां के मानसिक स्वास्थ्य और शिशु की भावनात्मक स्थिरता को बढ़ावा देता है।
विश्व स्तनपान सप्ताह हर साल एक नई थीम के साथ आता है, जो वैश्विक आवश्यकताओं और चुनौतियों को उजागर करता है। वर्ष 2025 की थीम, “स्तनपान के लिए समावेशी समाज का निर्माण: सभी के लिए समान अवसर,” इस बात पर बल देती है कि स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए समाज के हर वर्ग की भागीदारी जरूरी है। आधुनिक युग में, जहां कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ रही है, कार्यस्थलों पर स्तनपान के लिए अनुकूल वातावरण बनाना आवश्यक है। इसमें निजी और स्वच्छ स्तनपान कक्ष, दूध संग्रह की सुविधाएं, और पर्याप्त ब्रेक का प्रावधान शामिल है। भारत में मातृत्व लाभ अधिनियम, 2017 के तहत 26 सप्ताह का मातृत्व अवकाश एक सकारात्मक कदम है, लेकिन असंगठित क्षेत्र की महिलाओं के लिए ऐसी सुविधाओं की कमी अभी भी एक बड़ी बाधा है। एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में केवल 30% कार्यस्थलों पर स्तनपान के लिए उपयुक्त सुविधाएं हैं, जो इस दिशा में समावेशी और समान प्रयासों की जरूरत को रेखांकित करता है।
सामाजिक दृष्टिकोण से, स्तनपान को लेकर कई भ्रांतियां और संकोच अभी भी मौजूद हैं। सार्वजनिक स्थानों पर स्तनपान कराना कई महिलाओं के लिए असहजता और सामाजिक दबाव का कारण बनता है। कुछ समाजों में इसे अशोभनीय माना जाता है, जो एक गलत धारणा है। विश्व स्तनपान सप्ताह का एक प्रमुख उद्देश्य इन रूढ़ियों को तोड़ना और स्तनपान को एक सामान्य, गरिमामय और प्राकृतिक प्रक्रिया के रूप में स्थापित करना है। इसके लिए सामाजिक जागरूकता अभियान, जैसे टीवी, रेडियो और डिजिटल मीडिया पर सूचनात्मक विज्ञापन, माताओं की प्रेरक कहानियां और सामुदायिक स्तर पर चर्चाएं महत्वपूर्ण हैं।
स्तनपान को प्रोत्साहित करने के लिए शिक्षा और जागरूकता का प्रसार महत्वपूर्ण है। किशोरियों और युवतियों को स्कूलों और सामुदायिक कार्यक्रमों के माध्यम से मातृत्व और स्तनपान के बारे में जानकारी देना जरूरी है। इससे वे मातृत्व के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार हो सकती हैं। भारत में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत आशा कार्यकर्ता और आंगनवाड़ी सेवाएं इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। हालांकि, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में जागरूकता के स्तर में अभी भी असमानता है। उदाहरण के लिए, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार, भारत में केवल 64% शिशुओं को जन्म के पहले घंटे में स्तनपान कराया जाता है, जो वैश्विक मानकों से कम है।
सरकार और गैर-सरकारी संगठनों को मिलकर स्तनपान के समर्थन में ठोस नीतियां और अभियान चलाने की आवश्यकता है। इसके लिए कार्यस्थलों पर सख्त दिशानिर्देश, स्वास्थ्य केंद्रों में परामर्श सेवाएं, और सामुदायिक स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम आवश्यक हैं। भारत में “मां” (एमएए - मदर्स एबसोल्यूट अफेक्शन) कार्यक्रम एक सकारात्मक पहल है, जिसके तहत स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया जाता है और माताओं को स्तनपान के लाभों के बारे में जागरूक किया जाता है। इसके बावजूद, ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और शहरी क्षेत्रों में व्यस्त जीवनशैली इस प्रक्रिया में बाधा बनती है।
स्तनपान केवल एक व्यक्तिगत कर्तव्य नहीं, बल्कि एक सामाजिक और राष्ट्रीय जिम्मेदारी है। एक स्वस्थ पीढ़ी का निर्माण तभी संभव है, जब मां और शिशु को शारीरिक, मानसिक और सामाजिक समर्थन मिले। विश्व स्तनपान सप्ताह हमें याद दिलाता है कि हर मां को सम्मान के साथ, बिना किसी संकोच या भय के, कहीं भी और कभी भी स्तनपान कराने का अधिकार है। यह केवल एक सप्ताह का आयोजन नहीं, बल्कि एक सतत प्रक्रिया है, जिसमें नीति, शिक्षा, व्यवहार और सहानुभूति का समावेश होना चाहिए। यदि हम सभी मिलकर स्तनपान के अनुकूल वातावरण बनाएं, तो यह न केवल शिशुओं के बेहतर स्वास्थ्य की गारंटी देगा, बल्कि एक मजबूत और स्वस्थ राष्ट्र के निर्माण का मार्ग भी प्रशस्त करेगा। यह सप्ताह हमें प्रेरित करता है कि हम इस दिशा में छोटे-छोटे कदम उठाएं, जो भविष्य में बड़े बदलाव ला सकते हैं।
- प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)