हार्ले की सवारी से ब्रिक्स तक: भारत की आर्थिक कूटनीति
[ट्रंप बनाम भारत: व्यापारिक तनाव में छिपे अवसर]
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्ते एक जटिल और गतिशील ताने-बाने की तरह हैं, जहां तनाव और अवसर एक साथ उभरते हैं। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हार्ले-डेविडसन मोटरसाइकिल का जिक्र कर भारत पर ऊंचे टैरिफ का आरोप लगाया, इसे एकतरफा व्यापार नीति वाला देश करार दिया। उनके अनुसार, भारत अमेरिकी उत्पादों पर दुनिया में सबसे अधिक टैरिफ थोपता है। लेकिन भारत के दृष्टिकोण से यह कहानी सिर्फ टैरिफ की नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता, रणनीतिक कूटनीति और वैश्विक व्यापार में अपनी मजबूत स्थिति कायम करने की है।
ट्रंप का हार्ले-डेविडसन बयान कोई नई बात नहीं। 2018 में भी उन्होंने भारत के टैरिफ को अनुचित ठहराया था, दावा करते हुए कि हार्ले पर 200% टैरिफ था, जो बाद में 50% हुआ। हकीकत में, टैरिफ अधिकतम 100% था, जिसे 2018 में भारत ने घटाकर 50% कर दिया। यह कटौती भारत की लचीली और सहयोगी व्यापार नीति का सबूत थी। फिर भी, भारत के लिए टैरिफ महज राजस्व का साधन नहीं, बल्कि घरेलू उद्योगों खासकर छोटे और मध्यम उद्यमों, किसानों और पशुपालकों के लिए सुरक्षा कवच है। हार्ले-डेविडसन जैसी सुपरबाइक, जिसकी कीमत लाखों में है, भारत के मध्यम वर्ग की पहुंच से परे है। ऐसे लक्जरी उत्पादों पर ऊंचा टैरिफ भारत की उस आर्थिक रणनीति का हिस्सा है, जो स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देती है, आयात पर निर्भरता घटाती है और आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार करती है। यहाँ कहानी सिर्फ आंकड़ों की नहीं, बल्कि भारत की उस महत्वाकांक्षा की है, जो वैश्विक मंच पर आर्थिक संप्रभुता और संतुलन को प्राथमिकता देती है।
भारत का दृष्टिकोण न केवल रक्षात्मक, बल्कि दूरदर्शी और रणनीतिक रूप से परिपक्व है। ट्रंप के ऊंचे टैरिफ के आरोपों के जवाब में वाणिज्य मंत्री ने दमदार और स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक समझौते पर बातचीत जोरों पर है, और नवंबर 2025 तक एक अंतरिम समझौता संभव है। यह कूटनीतिक परिपक्वता भारत की उस महत्त्वाकांक्षा को रेखांकित करती है, जो न केवल अमेरिका के साथ व्यापारिक संतुलन साधती है, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत को एक अग्रणी आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित करती है। इसके लिए भारत ने चतुराई भरे कदम उठाए हैं। मिसाल के तौर पर, अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम करने के लिए भारत ने 40 अन्य देशों के साथ वस्त्र निर्यात को बढ़ावा देने की ठोस रणनीति बनाई है। इसके साथ ही, भारत ने अमेरिकी लॉबिंग फर्म मरक्यूरी पब्लिक अफेयर्स के साथ 225,000 डॉलर का अनुबंध किया है, ताकि ट्रंप प्रशासन के साथ बातचीत को और प्रभावी बनाया जा सके। यह कदम भारत की सधी हुई रणनीति का प्रतीक है—न टकराव की राह, न दबाव में झुकना, बल्कि स्मार्ट कूटनीति और आर्थिक चतुराई के साथ वैश्विक व्यापार में अपनी धाक जमाना। भारत का यह दृष्टिकोण न केवल रक्षात्मक ढाल है, बल्कि एक ऐसी तलवार भी है, जो वैश्विक मंच पर उसकी आर्थिक संप्रभुता को और तेज करती है।
हार्ले-डेविडसन का उदाहरण भारत के लिए न केवल एक व्यापारिक सबक है, बल्कि एक गहरा सांस्कृतिक और आर्थिक संदेश भी देता है। 1903 में विलियम एस. हार्ले और डेविडसन बंधुओं ने एक छोटे से शेड में शुरू की गई यह मोटरसाइकिल आज अमेरिकी संस्कृति का गौरव है, लेकिन भारत में भी इसका जादू कम नहीं। ऑटो विशेषज्ञ टुटू धवन बताते हैं कि हार्ले की अनूठी डिज़ाइन और ऐतिहासिक विरासत इसे भारत में स्टाइल और रुतबे का प्रतीक बनाती है। दिल्ली जैसे शहरों में, जहां फरारी चलाना चुनौतीपूर्ण है, हार्ले सड़कों पर शान और शक्ति का पर्याय है। भारत में इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए हार्ले ने स्थानीय उत्पादन शुरू किया, जिसने न केवल टैरिफ के प्रभाव को कम किया, बल्कि स्थानीय रोजगार को बढ़ावा देकर "मेक इन इंडिया" की भावना को साकार किया। यह भारत की उस दूरदर्शी नीति का प्रतीक है, जो विदेशी निवेश को आकर्षित करते हुए आत्मनिर्भरता को मजबूत करती है।
भारत-अमेरिका व्यापारिक रिश्तों की कहानी टैरिफ की सतही जंग से कहीं गहरी है। भारत अमेरिका को सस्ती जेनेरिक दवाएं, कपड़ा, और रत्न-आभूषण जैसे उत्पाद निर्यात करता है, जो अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए वरदान हैं। 2024 में भारत ने 12.5 अरब डॉलर की जेनेरिक दवाएं निर्यात कीं, जो अमेरिकी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की रीढ़ बनीं। दूसरी ओर, अमेरिका भारत से कृषि और डेयरी क्षेत्रों में अधिक बाजार पहुंच चाहता है, जिसे भारत ने अपनी घरेलू प्राथमिकताओं और किसानों के हितों को ध्यान में रखकर अस्वीकार किया। यह अस्वीकृति भारत की आत्मनिर्भरता की दृढ़ नीति को रेखांकित करती है। ट्रंप द्वारा रूस से तेल खरीदने पर लगाए गए 25% अतिरिक्त टैरिफ ने तनाव को और गहराया, लेकिन भारत ने इसका जवाब ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) जैसे मंचों पर अपनी वैश्विक साख को और मजबूत करके दिया। यह भारत की वह रणनीतिक चतुराई है, जो न केवल आर्थिक संप्रभुता की रक्षा करती है, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत को एक सशक्त और स्वाभिमानी शक्ति के रूप में स्थापित करती है।
ट्रंप की "अमेरिका फर्स्ट" नीति और भारत की "आत्मनिर्भर भारत" दृष्टि के बीच का टकराव वैश्विक व्यापार की एक रोमांचक और गतिशील गाथा है। ट्रंप की आक्रामक शैली, जहां वह टैरिफ को हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं, भारत के लिए चुनौती तो लाती है, मगर यह भारत को अपनी कूटनीतिक और आर्थिक रणनीति को और धारदार बनाने का सुनहरा अवसर भी देती है। भारत ने न केवल अमेरिका के साथ बातचीत को अटल रखा है, बल्कि यूरोपीय संघ के साथ मुक्त व्यापार समझौते और जापान जैसे देशों के साथ गहरे व्यापारिक रिश्तों के जरिए अपनी वैश्विक साख को अभूतपूर्व ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। यह भारत की उस बढ़ती ताकत का प्रतीक है, जो वैश्विक व्यापार के मैदान में नई मिसालें गढ़ रही है।
इस पूरे विवाद में भारत का रुख क्रिस्टल की तरह साफ है: न तो वह दबाव में झुकेगा, न ही अनावश्यक टकराव की राह अपनाएगा। भारत की नीति संतुलन, संयम और साझेदारी की मजबूत नींव पर टिकी है। नवंबर 2025 तक प्रस्तावित व्यापार समझौता इस दिशा में एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकता है, जो न केवल टैरिफ विवादों को शांत करेगा, बल्कि भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी को नई ऊर्जा देगा। चाहे हार्ले-डेविडसन का सड़कों पर दबदबा हो या व्यापारिक कूटनीति की सधी हुई चाल, भारत अपनी राह पर अडिग और आत्मविश्वास के साथ बढ़ रहा है। यह भारत केवल एक उभरती अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि एक ऐसी वैश्विक शक्ति है, जो व्यापार और कूटनीति के नए नियम लिखने को तैयार है, अपनी शर्तों पर, अपनी ताकत से।
- प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)