काव्य :
ग़ज़ल
नजर ए वयां कुछ कह गयी मुझसे,
पास होकर भी दूरी रह गयी मुझसे,
बारिश से बचने आसरा लिया था उसने,
दिल में रखकर विरह सह गयी मुझसे,
मेरे सहारे की आस लिए खड़ी थी,
दरिया किनारे थी दूर बह गयी मुझसे,
लकड़ी के सहारे दूसरे तट लग गयी,
साहिबा खातून दूर रह गयी मुझसे,
अब वो किसी सुल्तान की बेगम है,
एक छत्र शोहरत बेतरह गयी मुझसे,
यहाँ सल्तनत सदा रही किसकी,
वह भी गुपचुप की तरह गयी मुझसे,
उसकी आँखों में 'विनय' तस्वीर तेरी,
मेरे ही हाथों मंजिल ढह गयी मुझसे।
- विनय चौरे , इटारसी
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