काव्य :
ज्ञान सुधा
विश्व की पुण्य धरा पर बहती
हिय-तल को शीतल करती
अंतर को निर्मल करती
अविरल धारा — ज्ञान सुधा !
प्राप्त कर लो ,शांत करो लो
व्याकुल मन की अब क्षुधा !!
बूँद-बूँद अमृत ज्ञान का
सत्य-प्रकाश सदा ही झरता !!
लहरों सा अविरल बहता
सृष्टि-ज्ञान सदा प्रवहता !
सोख लो तुम इस सुधा को
शुष्क मृदा सम सहजता !
दिग-दिगंत परम ज्ञान
प्रकाश पुंज हर जगह !
अमित, अमिट, अपरिमित उसकी
महिमा गूंजे सर्वदा !
श्रवण करो उस नाद को तुम
गूँजे जो ब्रह्मनाद सा !
मन में उतरे, शांति भर दे
अमृत सुधा अविराम सा !!
- नीता श्रीवास्तव श्रद्धा ,भोपाल
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