काव्य
आई दीपावली
द्वार द्वार सज रहे बांधे बंदनवार गोरी
बार-बार उलझी लट को संवारती,
दीप से नयन द्युति करती प्रज्वल ज्योति
चहुं ओर दीपमाला गृह मध्य आरती।
नृप हो या रंक कोई महल-कुटीर कोई
आई दीपावलि सब पथ बाट झारती,
कहे 'सुधा' अमावस तमस रहा विहंस
ज्योत जल आनंद मगन मन धारती।
-डाॅ. सुधा कुमारी
नई दिल्ली
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