काव्य :
हे मात लक्ष्मी
भोग तुम्हीं हो, भोगती तुम्हीं हो
जीवन दायिनी, पालती तुम्हीं हो,
तत्व तुम्हीं हो, तत्वज्ञ तुम्हीं हो
चर अचर जगत जानती तुम्हीं हो।
दीप तुम्हीं हो, प्रकाश भी तुम्हीं हो
तुम्हीं शारदा, मां दुर्गा तुम्हीं हो,
हर रूप में केवल मात तुम्हीं हो
नर नारी जीव जंतु में बस तुम्हीं हो ।
बुद्धि तुम्हीं , बुद्धि दाता तुम्हीं हो
ज्ञान तुम्हीं हो, विज्ञान तुम्हीं हो ,
तुम्हीं अंधकार, प्रकाश तुम्हीं हो
संसार तुम्हीं हो, परिवार तुम्हीं हो।
माया तुम्हीं हो, भ्रम भी तुम्हीं हो
सकल ब्रह्माण्ड में तुम्हीं तुम्हीं हो
सुख तुम्हीं हो, मात दुख तुम्हीं हो
मैं तुममें हूँ, मुझमें मात तुम्हीं हो।
- डॉ. सत्येंद्र सिंह
पुणे, महाराष्ट्र
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काव्य
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सुंदर रचना 🙏
ReplyDelete— धन, ज्ञान, माया, प्रकाश और करुणा को बड़ी ही गहराई से शब्दों में पिरोया है।
हर पंक्ति में भक्ति, दर्शन और अद्वैत का भाव झलकता है।