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व्यंग्य : जीनीयस जनरेशन की ‘लोल’ भाषा - विवेक रंजन श्रीवास्तव भोपाल


 

व्यंग्य : 

जीनीयस जनरेशन की ‘लोल’ भाषा 


विवेक रंजन श्रीवास्तव भोपाल 


 जेन जी ने एक ऐसी भाषा गढ़ी है जिसने व्याकरण नामक चीज को सीधे तौर पर चैलेंज कर दिखाया है। यह भाषा नहीं, एक क्रांति है, जिसे हम ‘जेन जी’ यानि जनरेशन जी की ‘लोल’ भाषा कह सकते हैं। यह भाषा मोबाइल और चैट की दुनिया की वह शॉर्टहैंड है जहां शब्दों का मतलब बदल जाता है, वर्ण विलीन हो जाते हैं और इमोजी एक पूरी वाक्य की भूमिका निभाने लगते हैं। इसे समझने के लिए आपको किसी डिक्शनरी की नहीं, बल्कि संदर्भ के अनुरूप एक विशेष समझ की जरूरत होती है।

इस भाषा का मूल सिद्धांत है ‘जो दिखे सो नहीं, जो लिखे सो है’। मसलन, ‘यू’ ‘आप’ नहीं, ‘तू’ हो जाता है। ‘आर’ ‘हैं’ नहीं, ‘हो’ बन जाता है। और ‘लोल’? अरे भाई, ‘लोल’ तो हंसने की आवाज़ नहीं, जीवन जीने का एक तरीका है! लाफ आउट लाउडली। यह भाषा इतनी लचीली है कि इसमें ‘थैंक्यू’ ‘थेंक्स’ बनता है, फिर ‘थैंक्स’ से ‘टी.एन.एक्स’ और फिर सीधे ‘टी.क्यू’ तक पहुंच जाता है। यानी, जाकी रही भावना जैसी , वह समझे बोली वैसी।  शब्दों में अक्षरों का वजन घटता चला जाता है। क्लासिक टेस्ट क्रिकेट, फिफ्टी फिफ्टी, 20 .. 20 से होते हुए इस भाषा में सुपर ओवर बन जाता है। युवाओं की इस भाषा में अक्षरों की बलि चढ़ाना आम बात है। स्वरों को तो जैसे दरबार से निकाल बाहर किया गया है। ‘व्हाट आर यू डूइंग?’ जैसा भद्दा और लंबा वाक्य इस नई भाषा में ‘व्हाट आर यू डूइंग?’ न रहकर ‘वट आर यू डूइंग?’ बन जाता है और फिर धीरे-धीरे ‘वट आर यू डूइन’ और अंततः ‘डूइन वट?’ तक सिमट चुका है। यह एक तरह से भाषा का मिनिमलिज्म है, जहां कम से कम शब्दों में ज्यादा से ज्यादा भाव अभिव्यक्त हो रहे हैं।

रही सही कसर असर दार इमोजी निकाल रहे हैं। इमोजी इस मजेदार भाषा की आत्मा हैं। एक हंसता हुआ चेहरा जिसकी आंखों से आंसू निकल रहे हैं (एल.ओ.एल.) वह खुशी, गम, हैरानी, या फिर सिर्फ ‘यार, मजाक था’ तक का संदेश दे सकता है। 

एक लाल दिल (लव) प्यार, दोस्ती, शुभकामना या फिर ‘ओके, बाय’ का इशारा कर सकता है। यह एक अंतरराष्ट्रीय भाषा है जो देश, काल, जाति, धर्म के बंधन तोड़कर सीधे दिल से दिल तक रात बिरात बात पहुंचाती नजर आती है।

इस भाषा ने एक नए प्रकार के सामाजिक वर्ग को जन्म दिया है। वे जो इस कोड को समझते हैं और वे जो नहीं समझते। एक मां का अपने बेटे के मैसेज ‘पी.सी.एम., जी.एन., टी.सी., आई.एल.वाय’ को देखकर हैरान होना और फिर उसे समझने के लिए इंटरनेट की मदद लेना, आज के दौर की एक सामान्य घटना है। ‘पी.सी.एम.’ यानी ‘पेरेंटल कंट्रोल मच’, ‘जी.एन.’ यानी ‘गुड नाइट’, ‘टी.सी.’ यानी ‘टेक केयर’ और ‘आई.एल.वाय’ यानी ‘आई लव यू’। यह एक छोटा सा संदेश एक पूरी भावनात्मक बातचीत को समेटे हुए है। इसके सम्मुख बंद हो चुके मार्स कोड वाला टेलीग्राम पानी भर रहे हैं।

निष्कर्ष के तौर पर, यह ‘लोल’ भाषा महज शब्दों का संक्षिप्तिकरण नहीं है। यह एक सांस्कृतिक बदलाव है, जो तकनीक और समय के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने की कोशिश है। युवाओं के पास समय का अभाव हो सकता है, या उनकी आयोडीन नमक सेवन वाली बुद्धि की कुशाग्र समझ का परिणाम हो सकता है ।  पुरानी पीढ़ी को यह अजीब लगे, लेकिन यह नई पीढ़ी की अपनी मौलिकनपहचान है। 

इसलिए अगली बार जब कोई आपको ‘आई.डी.के.’ (आई डोंट नो) लिखे, तो नाराज न हों। बस ‘एस.एम.एच.’ (शेकिंग माय हेड) करते हुए ‘टी.टी.वाय.एल.’ (टॉक टू यू लेटर) लिख दें। क्योंकि अगर आपने इस भाषा का विरोध किया, तो ‘जी.ओ.ए.टी.’ (ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम) जनरेशन आपको ‘टी.एल.डी.आर.’ (टू लॉन्ग, डिड नॉट रीड) कहकर नजरअंदाज कर देगी। और हां, ‘एफ.वाय.आई’ (फॉर यूअर इनफार्मेशन), इस पूरे लेख को पढ़ने के लिए ‘टी.वाय’ (थैंक यू)!


 - विवेक रंजन श्रीवास्तव भोपाल

7000375798

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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