काव्य :
चाहत
चाहत है तेरे आस-पास ही रहूँ।
चाहे तुलसी बन तेरे आँगन में रहूँ।।
तेरे हाथों नीर ग्रहण करके।
प्रीत का प्यास बुझाती रहूँ।।
बागबान अपने बाग का तुम रहो।
मैं उसमें खिलती गुलाब बनूँ।।
छा जाऊं तेरे घर आँगन में।
मधुमालती बन पसरी रहूँ।।
अब जुदाई सही नहीं जाती है।
सूनी दिन और रात कैसे काटूं।।
विरह-वेदना तुम समझ न पाओ।
बात ये कैसे तुमको समझाऊं।।
- डॉ मंजू लता , नोयेडा
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