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भावपक्ष - सुरेखा"स्वरा" , लखनऊ उत्तरप्रदेश


 भावपक्ष

हम दुख और सुख

पीड़ा और ख़ुशी के मध्य सफर करते है यह यात्राएं हमे  भीतर से मजूबत भी करती है और तोड़ती भी उतना ही है।दरअसल हम मनुष्य जितने भावुक उतने कठोर भी।

बस समय, स्थिति हमे एक भावपक्ष दे देती है, जो भाव स्थिति और समय के साथ जितना मजूबत अभिव्यक्ति की अभिव्यंजना भी वैसी ही

दुख ग़म पीड़ाएँ नकारात्मक है इसलिए सब गौण औऱ नकारात्मक ही लिखा जाएगा,अवसाद क़भी सन्मार्ग नही दिखाता क्योंकि अवसाद अंधेरे की तरह कोई उम्मीद नही,इसलिए अभिव्यक्ति पीड़ा से भरपूर जोड़े रखती है चूंकि दुख है और दुःख हर किसको बताना वर्जित भी ,कहे तो क्या औऱ किससे?अहम प्रश्न बात का बतंगड़ बन गया तो?

शब्दो का हेर फेर हो गया तो?

बात कैसे की गई किस स्थिति में  

की गई किस स्थिति में पहुंचेगी?

बड़ी बात,तो किसी तक बात ही न पहुंचे बेहत्तर है उकेरना आपके अपने शब्दों में बस हम रच देते है

जवाब भी मिलते है एक एक बात के कई सारे,मिश्रित विवेचना तर्क तर्कहीन, पक्ष विपक्ष हर तरह के भाव

याने पीड़ाओं से सब जुड़ते है, मसले मिलते है तभी,औऱ आपकी अभिव्यक्ति किसी व्यक्ति परिस्थिति या वक्त के साथ मेल खाती है तो जवाब के रूप में वो आपके पास पहुंच जाती है।और यही हमे अपनी हर पीड़ाओं का जवाब मिल जाता बगैर उत्तर दिए

हां, एक बात गौर करने लायक आपकी लिखी बात कही गई बात से टस से मस नही।

हेरफेर का डर नही।क्योंकि वह आपकी वेदना थी जो आपने लिख  दी,दुख ज्यादा दिन हावी रहते है।खामखा क्योंकि हमने उसे पालने की आदत डाल रखी है पोसते भी ज़रूरत से ज़्यादा ही है।

 इसलिए यह मनीप्लांट की तरह बढ़ते भी खूब है।

 कटिंग अवसाद की ,कटिंग वेदना की ज़रूरी। इसलिए वेदनाएं  जड़ो रहित सहित बढ़ती रहती है।बोन्साई न बनने दे बढ़ने दीजिये,अभिव्यक्ति को   भी,फिर एक दिन कटिंग कर दीजिए

कहते है रात के बाद सवेरा प्रमाण है उम्मीदों का,ग़र अंधेरा अजर है तो सवेरा अमर भी पूरक भी

दुख के बाद सुख खुशी

इन पलो को हम सेल्फियों में हंसी में सहेज लेते है, औऱ एक अल्बम में समेट लेते है, सुख दिखाए नही जाते कहते है नज़र लग जाती है इसलिए वे सीमित रह जाते है, डरते हम नज़र न लग जाए किसीकी इसलिए वे लम्हे कहलाते है, प्यारे सुकून भरे लम्हे।

जब हम गहन पीड़ा में होते तो वे सुकूँ वाले लम्हे हमे पालते है, पोसते है औऱ हर नकारात्मक ऊर्जा से दूर बहाकर ले जाते है

 याने दोनो पूरक, मिथ्या कुछ भी

नही,बस स्थिति समय अनुकूल नही होती होंगी

भीड़ से अलहदा क़भी एकांत भी ज़रूरी क्योंकि यह एकांत आपको हर उर्ज़ा से परिचय कराता रहेगा कभी अवसाद की तरफ़, कभी मृत्यु की तरफ़, कभी सृजनात्मक भाव पक्ष तो क़भी ज़िंदगी को नए नज़रिए से देखने को लेकर..

उलझने भी रहेँगी तो कभी दोराहो पर भटकन भी,आंसू के साथ आक्रोश, चीख भी।तो कभी खुशियों  के अठ्ठाहस लिए नृत्य भी गीत भी उत्सव भी..बस कुछ पल कुक समय देकर ध्यान से सोचें कि आपकी दिशा कौनसी है?

चुनाव आपका, आत्मविश्वास, आत्मविश्लेषण भी आपका


सही चुने चाहे वक्त लगें..

क्योंकि सबकी जिंदगी बस एक बार की..

नोट...यह मेरा आत्मविश्वास के साथ आत्मविश्लेषण भी,क्योंकि हर स्थिति और समय को सींचने पोसने  औऱ पालने की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ औऱ सिर्फ़ अपनी?

क्या कहते आप?

#स्वरा

कहानियां चलती रहेंगी कभी किरदार हम तो आगे कोई औऱ

क्योंकि हम है तो कहानियां,किस्से लम्हे औऱ यादें भी

तो छोड़ो कल की बातें

कल की बात पुरानी

नए दौर पर लिखेंगे

मिलकर नई कहानी।


 - सुरेखा"स्वरा" , लखनऊ

उत्तरप्रदेश

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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