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ज्वलंत मुद्दा : बच्चों की कफ सिरप से मौतों का सिलसिला थमा नहीं है , सिस्टम की असफलता उजागर


 

ज्वलंत मुद्दा : 

बच्चों की कफ सिरप से मौतों का सिलसिला थमा नहीं है , सिस्टम की असफलता उजागर


विशेष रिपोर्ट डॉ घनश्याम बटवाल, मंदसौर

       घटना - दुर्घटना के बाद सिस्टम और सरकार जागृत होता है और अपने स्तर पर जो पल्ला झाड़कर आगे बढ़ जाता है ? यही सब कुछ चल रहा है जिले में प्रदेश में और देश भर में , अब कटने - मरने - कुचलने के लिए निरीह जन ही हैं? 

ऐसा ही हाल के अमानक कफ सिरप से मृत बच्चों के शवों पर विलाप से सामने आया है और मुख्यमंत्री ने ड्रग कंट्रोलर सहित अन्य को सस्पेंड किया है ओर राजधानी समेत कई जिलों में जांच कर कार्यवाही के निर्देश दिए साथ ही दुर्भाग्य से मौत के मुंह में समाए बच्चों के परिवारों को आर्थिक मदद ऐलान करने बाद सोशल मीडिया पर ढाढस बंधाया? यही क्रम हर घटना - दुर्घटना में अबतक सामने आया है ।

बात करते हैं भारत में कफ सिरप से जुड़ी बच्चों की मौतें एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या पर, हाल के वर्षों में, विशेष रूप से 2023-2025 के दौरान, कई घटनाओं ने इस मुद्दे को उजागर किया है। 

हाल ही में 2025 में ही मध्य प्रदेश और राजस्थान में कम से कम 18 बच्चों (16+2) की मौतें कफ सिरप से जुड़ी पाई गईं, और अभी उपचार रत पीड़ित कितने जीवन मृत्यु का संघर्ष कर रहे हैं जो मुख्यतः दूषित उत्पादों के कारण हुईं। यह समस्या न केवल घरेलू स्तर पर बल्कि वैश्विक स्तर पर भी चिंता का विषय बनी हुई है, जैसे 2022 में गाम्बिया में भारतीय कफ सिरप से 70 से अधिक बच्चों की मौत।  हम कारणों और निराकरण के उपायों का विस्तृत विवेचन करेंगे।

*कारणों का विश्लेषण*

कफ सिरप से बच्चों की मौतें मुख्य रूप से दूषण (contamination), अनुचित उपयोग और नियामक कमजोरियों से जुड़ी हैं। ये सिरप अक्सर वायरल संक्रमण से होने वाली सामान्य खांसी के लिए दिए जाते हैं, जो स्वयं ठीक हो जाती है, लेकिन दूषित होने पर घातक साबित होते हैं। 

मुख्य कार्मिक अधिकारी रहे जयपुर के जानकार श्री विजय प्रकाश पारीक बताते हैं कि इस पर प्रमुख कारणों में

विषाक्त रसायनों का दूषण (Toxic Contamination):

सबसे बड़ा खतरा डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) या एथिलीन ग्लाइकॉल (EG) जैसे औद्योगिक सॉल्वेंट्स का मिश्रण है, जो सस्ते विकल्प के रूप में फार्मास्यूटिकल-ग्रेड ग्लिसरीन की जगह इस्तेमाल होते हैं। ये पदार्थ किडनी फेलियर का कारण बनते हैं, जिससे बच्चे की मौत हो जाती है।

: 2025 में भी 'कोल्ड्रिफ' कफ सिरप (तमिलनाडु की श्रीसन फार्मा द्वारा निर्मित) में DEG की मात्रा सीमा से अधिक पाई गई, जिससे मध्य प्रदेश और राजस्थान में 9 बच्चों (सभी 5 वर्ष से कम आयु के) की मौत हुई। इसी प्रकार, राजस्थान में सरकारी आपूर्ति वाले डेक्सट्रोमेथॉर्फन युक्त सिरप से 2 बच्चों की मौत हुई, जहां संदिग्ध ओवरडोज या अन्य दूषण की जांच चल रही है।

यह तथ्य भी उजागर हुआ कि कोल्ड्रिफ कफ सिरप निर्माता कंपनी सरकारी रिकॉर्ड में बंद बताई गई और उसी स्थान पर कोई 14 साल पहले नाम बदलकर कारोबार किया जा रहा है मेडिसिन निर्माण के मानक और नियमों को धता बताकर आधा दर्जन राज्यों में सप्लाई कर व्यवसाय कर रहा है । कहीं कोई निगरानी नहीं कोई पकड़ नहीं यह पूरी तरह सिस्टम की फैलियर ही है, बच्चों की किडनी फैलियर हुई और मौत होगई अब सिस्टम फैलियर पर क्या ?

*वैश्विक संदर्भ:* 

हालांकि यह पहला मामला नहीं है जब मौतें हुई हों इसके पूर्व 

2023 में भारतीय सिरप से गाम्बिया में 66 बच्चों की मौत DEG दूषण से हुई।

मोटेतौर पर निर्माण एवं गुणवत्ता नियंत्रण की कमी (Manufacturing and Quality Lapses):

छोटे या अनियमित फार्मा कंपनियां सस्ते कच्चे माल का उपयोग करती हैं, जहां DEG/EG की जांच नहीं होती। भारत में फार्मा उद्योग का बड़ा हिस्सा निर्यात-उन्मुख है, लेकिन घरेलू उत्पादों में भी GMP (Good Manufacturing Practices) का पालन कमजोर है।

हालिया जांच में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 6 राज्यों में 19 दवा निर्माताओं का निरीक्षण शुरू किया, जहां गुणवत्ता लापरवाही पाई गई।

अनुचित उपयोग एवं ओवर-द-काउंटर बिक्री (Misuse and Overuse) पाया गया है , इस पर क्या कार्यवाही हुई, प्रतीक्षा है ?

जानकार विशेषज्ञ चिकित्सक के अनुसार 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कफ सिरप की आवश्यकता ही नहीं होती, क्योंकि अधिकांश खांसी वायरल होती है और बिना दवा ठीक हो जाती है। फिर भी, स्व-चिकित्सा या डॉक्टरों द्वारा आसानी से प्रेस्क्राइब करने से ओवरडोज होता है।

कफ सिरप से जोखिम: हो जाता है डेक्सट्रोमेथॉर्फन जैसे तत्व छोटे बच्चों में सांस लेने में कठिनाई, मतिभ्रम या मौत का कारण बन सकते हैं। अमेरिकी FDA 4 वर्ष से कम बच्चों को इनकी सलाह नहीं देता। भारत में 'अनरेशनल' फॉर्मूलेशन (3+ दवाओं का मिश्रण) आम हैं, जो हानिकारक हैं।

उदाहरण: में देखें तो राजस्थान की घटना में 10 से अधिक बच्चे बीमार पड़े, और मामले ने तुल पकड़ा तो एक डॉक्टर ने 'सुरक्षा साबित' करने के लिए स्वयं कफ सिरप पीया तो बेहोश हो गया , अब इसे आप क्या कहेंगे ।

ये कारण मुख्यतः कमजोर नियमन, आर्थिक दबाव और जागरूकता की कमी से उपजते हैं, जिससे निम्न-आय वर्ग के बच्चे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।

*निराकरण के उपाय: सुझाव एवं कार्यान्वयन*

जयपुर से विशेषज्ञ जानकार श्री विजय प्रकाश पारीक बताते हैं कि इस समस्या का निराकरण बहु-स्तरीय होना चाहिए—तत्काल प्रतिबंध से लेकर दीर्घकालिक नियामक सुधार तक। हालिया घटनाओं के बाद सरकार सक्रिय हुई है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि मजबूत प्रवर्तन जरूरी है। प्रमुख उपाय:

तत्काल नियंत्रण एवं प्रतिबंध (Immediate Bans and Investigations):

प्रभावित सिरपों पर पूर्ण प्रतिबंध: मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना ने 'कोल्ड्रिफ' और संबंधित उत्पादों पर बैन लगाया। राजस्थान ने 22 बैचों का वितरण रोका।

जांच एवं परीक्षण: CDSCO ने 6 राज्यों में रिस्क-बेस्ड निरीक्षण शुरू किए। स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों के साथ उच्च-स्तरीय बैठक बुलाई, जहां 13 नमूनों की जांच में 3 साफ पाए गए। 

मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, पुडुचेरी केरल आदि राज्यों में भी अमानक स्तर पर कफ सिरप पाया गया है।

तत्काल प्रभाव से कफ सिरप की प्रभावित बैचों को तुरंत नष्ट करें और स्टॉक की जांच करें।

नियामक एवं निर्माण सुधार (Regulatory and Manufacturing Reforms):

रिवाइज्ड शेड्यूल M (GMP) और GSR गुणवत्ता मानकों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करें। कच्चे माल (जैसे ग्लिसरीन) में DEG/EG की अनिवार्य जांच।

आपूर्ति श्रृंखला निगरानी: आयातित/घरेलू एक्सीपिएंट्स पर ट्रैकिंग सिस्टम। 

*विशेषज्ञ सुझाव*

: कम-नियमन वाले देशों में दूषण रोकने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO-मानकों का अनुसरण पालन हो ओटीसी बिक्री पर प्रतिबंध: कफ सिरप केवल प्रिस्क्रिप्शन पर उपलब्ध कराएं। यह स्मरण किया जाने योग्य है कि कफ सिरप में ड्रग्स के रुप में भी जमकर उपयोग किए जाने से कोई युवाओं को एडिक्शन हुआ ओर नशे के आदी होने लगे, तब भी प्रतिबंध लगा अब यह घात बच्चों पर पड़ी 

एक सुझाव यह भी है कि चिकित्सकीय एवं जागरूकता उपाय (Medical and Awareness Measures):

बच्चों में कफ सिरप का परहेज: 6 वर्ष से कम उम्र में न दें। विशेषज्ञ चिकित्सक डॉ. मोनालिसा साहू सलाह देते हैं कि खांसी का मूल कारण (एलर्जी/संक्रमण) पहचानें।

विकल्प: हाइड्रेशन, शहद (1 वर्ष से ऊपर), सलाइन ड्रॉप्स, ह्यूमिडिफायर या भाप। भारतीय चिकित्सा संघ (IMA) भी तर्कसंगत दवा उपयोग पर अभियान चला रहा है।

जन जागरूकता: अभिभावकों को जोखिमों की जानकारी दें, जैसे साइड इफेक्ट्स (उल्टी, भ्रम)।

कफ सिरप से बच्चों की मौतें रोकथाम योग्य हैं, लेकिन इसके लिए सरकार, निर्माताओं , विक्रेताओं और चिकित्सकों की संयुक्त जिम्मेदारी जरूरी है। 2025 की घटनाओं ने एक बार फिर नियमन की कमजोरी उजागर की, लेकिन चल रही जांचें और सुधार आशाजनक हैं। यदि ये उपाय प्रभावी ढंग से लागू हों, तो ऐसी त्रासदियां रोकी जा सकती हैं। वरना अकाल काल में समाते जाएंगे देश भर में नौनिहाल?

लिखने बोलने से अधिक महत्वपूर्ण है जो व्यवस्था और नियमों के परिपालना में लगाई गई है वह दायित्व बोध से अंजाम दे तो ही बच्चों बड़ों बुजुर्गों महिलाओं को सुरक्षा मिल सकती है अन्यथा केवल रुदन ही नियति बनती रहेगी।

अभी हमारी आपकी सबकी ओर से असमय मौत की भेंट चढ़ गए मासूमों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना ओर अश्रु पूर्ण श्रद्धांजलि।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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