काव्य :
मुस्कुराता लड़खड़ाता जीवन
धरा की गोद में
मौन की सीमा में
ध्वनि-सा आकार लेता,
उठा एक स्पंदन —
धीरे-धीरे…!
नेत्र बंद,
पर एक कोमल स्पर्श की धारा —
ममता में भीगी धड़कनें
सिखा रही थीं -
जीवन का संगीत !
फिर अचानक
एक ठहराव,
एक सन्नाटा —
मानो समय स्वयं
थम-सा गया हो।
पर उसी क्षण
एक मौन करुणा…
एक निःशब्द संवाद ..
कोमलता से थाम लेती है जीवन को…
और लड़खड़ाता जीवन …
फिर से मुस्कुराने लगता है।
- नीता श्रीवास्तव श्रद्धा
भोपाल
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