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सैनिकों के प्रति सम्मान और जिम्मेदारी का प्रतीक – ध्वज दिवस - प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)


 

[प्रसंगवश – 07 दिसम्बर: भारतीय सशस्त्र सेना ध्वज दिवस]

सैनिकों के प्रति सम्मान और जिम्मेदारी का प्रतीक – ध्वज दिवस

[ध्वज दिवस: वीरता, त्याग और राष्ट्रभक्ति का अमर संदेश]

[बलिदान की लहरों में छिपा है राष्ट्र के गौरव का सागर]

      भारत की धरती पर जब कभी गौरव, कर्तव्य और सर्वोच्च बलिदान की बात होती है, तो सबसे पहले हमारे उन वीर सैनिकों का स्मरण होता है, जो राष्ट्र की सुरक्षा के लिए हर क्षण सतर्क और अडिग खड़े रहते हैं। सीमा पार बर्फ़ीली हवाओं के बीच शून्य से नीचे गिरते तापमान में वे साहस की जीवित दीवार बनते हैं, और तपते मरुस्थल की जलती रेत पर भी अटूट धैर्य, संकल्प और राष्ट्रभक्ति के प्रतीक बने रहते हैं। इन्हीं अजेय योद्धाओं, पूर्व सैनिकों तथा शहीद परिवारों के सम्मान में प्रतिवर्ष 7 दिसंबर को भारतीय सशस्त्र सेना ध्वज दिवस  मनाया जाता है, यह मात्र एक औपचारिक तिथि नहीं, बल्कि उस त्याग-परंपरा का स्मारक है, जिसने भारत को सुरक्षित, सक्षम और स्वाभिमानी बनाए रखा है।

ध्वज दिवस हमारी सैन्य विरासत को नमन करने का अवसर है और उस मानवीय भावना की याद भी दिलाता है, जिसकी जड़ें इतिहास में गहराई तक हैं। 1949 में इसे सेना, नौसेना और वायुसेना के शहीदों, सेवारत और पूर्व सैनिकों के कल्याण के लिए स्थापित किया गया, ताकि राष्ट्र उनके योगदान को केवल शब्दों में नहीं, बल्कि सहयोग और सहभागिता के माध्यम से भी याद रख सके। आज यह दिवस नागरिकों की संवेदनशीलता और कृतज्ञता का प्रतीक है। झंडा खरीदना केवल प्रतीक है; असली उद्देश्य उस गहरे संदेश को समझना है कि हमारे सैनिकों का योगदान लौटाया नहीं जा सकता—परंतु उनके प्रति सम्मान, सहयोग और कृतज्ञता प्रकट करना हर नागरिक का अटल नैतिक दायित्व है।

ध्वज दिवस का उद्देश्य केवल धन-संग्रह भर नहीं है; यह वह पवित्र क्षण है जो नागरिक और सैनिक को एक अदृश्य किंतु अटूट सूत्र में बाँध देता है। सैनिक समाज से अलग होकर युद्ध नहीं लड़ते—वे उसी समाज के बेटे, भाई, पिता और पति होते हैं। वर्दी पहनते ही वे पूरे राष्ट्र की सुरक्षा की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले लेते हैं। इस दिन नागरिक उनके त्याग, संघर्ष और आवश्यकताओं को समझने का प्रयास करते हैं। यही वह अवसर है जब हम स्वीकारते हैं कि हमारा सुकून, हमारी नींद और हमारी स्वतंत्रता—सब कुछ उनकी अनथक चौकसी का प्रतिफल है।

भारतीय सशस्त्र बलों की भूमिका केवल युद्धभूमि तक सीमित नहीं। आपदा प्रबंधन, शांति मिशन, बचाव कार्यों से लेकर सीमावर्ती गाँवों के पुनर्वास तक—हर संकट की घड़ी में वे राष्ट्र के सबसे विश्वसनीय प्रहरी बनकर सामने आते हैं। हिमालय की ऊँची चोटियों पर चौकन्ने खड़े जवानों से लेकर समुद्र की अनंत लहरों का सामना करती नौसेना तक, और आकाश को सुरक्षित रखने वाली वायुसेना तक—ये तीनों मिलकर भारत के आत्मविश्वास और सामर्थ्य की सुदृढ़ नींव रचते हैं। 7 दिसंबर का दिन केवल उनकी वीरता का स्मरण नहीं, बल्कि उस पेशेवर निपुणता, अनुशासन और मानवीय संवेदना का सम्मान भी है, जो सशस्त्र बलों की पहचान बन चुकी है।

आज जब विश्व बदलते भू-राजनीतिक तनावों से गुजर रहा है, सैनिकों की भूमिका और अधिक निर्णायक हो उठी है। कहीं आतंकवाद, कहीं सीमा तनाव, तो कहीं प्राकृतिक आपदाएँ—हर चुनौती में सबसे पहले आगे बढ़ने वाला वही साहसी हाथ होता है, जिसकी रगों में देशभक्ति रक्त की तरह प्रवाहित होती है। एक सैनिक का जीवन केवल शौर्य और अनुशासन तक सीमित नहीं होता; उसके पीछे वर्षों की कठिन साधना, परिवारों का मौन त्याग और अनिश्चितताओं से जूझता एक संवेदनशील मन भी होता है। ध्वज दिवस उन सभी अदृश्य बलिदानों को पहचानने, सराहने और उन्हें सम्मानित करने का दिवस है।

भारतीय सशस्त्र बलों की भूमिका केवल युद्ध तक सीमित नहीं है। आपदा प्रबंधन, अंतरराष्ट्रीय शांति मिशन, बचाव अभियानों और सीमावर्ती गाँवों के पुनर्वास तक—हर संकट में वे सबसे विश्वसनीय प्रहरी बने रहते हैं। हिमालय की बर्फ़ीली चोटियों पर चौकसी करते जवान, समुद्र की उग्र लहरों से जूझती नौसेना और आकाश की सुरक्षा में तैनात वायुसेना—तीनों मिलकर भारत की सुरक्षा, आत्मविश्वास और सामर्थ्य की मजबूत नींव तैयार करते हैं। 7 दिसंबर केवल उनकी वीरता का स्मरण नहीं, बल्कि पेशेवर दक्षता, अनुशासन और मानवीय मूल्यों का सम्मान भी है।

भारत आज चाँद पर अपने कदम जमा चुका है, दुनिया की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्थाओं में गिना जा रहा है—फिर भी हमारे सैनिकों की सबसे बड़ी पहचान उनका साहस है, न कि उनके साधन। सीमा पर खड़ा वह जवान अपने कंधों पर देश का भार लिए रहता है, सुविधा नहीं—ज़िम्मेदारी लेकर। और सबसे अद्भुत बात यह है कि वह कभी रुकने की बात नहीं करता।

क्योंकि उसके लिए देश रक्षा कोई विकल्प नहीं, एक ऐसी प्रतिज्ञा है जिसे वह साँसों की तरह निभाता है। देश आगे बढ़ता है तकनीक से— पर सीमा सुरक्षित रहती है उसके अटूट इरादों से।

इसीलिए इस 7 दिसंबर, जब कोई जवान ध्वज लिए आपके सामने आए, सिर्फ पैसे मत दें। एक क्षण रुककर उसकी आँखों में देखें, वर्दी पर मेडल की चमक पढ़ें, थकान में छिपी दृढ़ता महसूस करें। प्यार और सम्मान से पूछें—“कहाँ तैनात हैं, आप?” और जब मुस्कुराकर बोले, “सर, बताना संभव नहीं… सीक्रेट है,” तो सिर झुकाकर सैल्यूट करें। क्योंकि उसके हाथ में थमा वह छोटा-सा ध्वज कागज या कपड़े का टुकड़ा नहीं—वह उस जवान का धड़कता हुआ दिल है, जो हमारी सुरक्षा के लिए हर पल धड़क रहा है।

यह दिवस हमें यह विचारने पर भी प्रेरित करता है कि क्या हम नागरिक के रूप में उतना कर पा रहे हैं, जितना हमारे रक्षक डिजर्व करते हैं। ध्वज दिवस के माध्यम से जुटाया गया धन पूर्व सैनिकों, युद्ध में घायल हुए जवानों तथा शहीद परिवारों के कल्याण—जैसे बच्चों की शिक्षा, चिकित्सा सहायता, पुनर्वास और स्वरोजगार योजनाओं में लगाया जाता है। यह केवल आर्थिक सहयोग नहीं, बल्कि उन वीरों के प्रति हमारे कर्तव्य और कृतज्ञता की अभिव्यक्ति है। जब हम ध्वज खरीदते हैं या डिजिटल माध्यमों से योगदान करते हैं, तो हम इस विश्वास को मजबूत करते हैं कि समाज अपने सैनिकों के साथ खड़ा है—हर परिस्थिति में, हर मोड़ पर।

ध्वज दिवस हमें यह भी सिखाता है कि एक मजबूत और सुरक्षित देश केवल सैनिकों के साहस पर नहीं, बल्कि प्रत्येक नागरिक की जागरूकता, जिम्मेदारी और सहयोग पर भी आधारित होता है। जब हम अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से निर्वहन करते हैं, समाज में अखंडता, एकता और पारस्परिक विश्वास बनाए रखते हैं, और किसी भी संकट की घड़ी में एकजुट होकर आगे बढ़ते हैं—तभी हम वास्तव में उस राष्ट्रध्वज के सम्मान की रक्षा करते हैं, जिसकी सुरक्षा के लिए हमारे वीर सैनिक अपना आज, अपना सुख और अपना सर्वस्व राष्ट्र को अर्पित कर देते हैं।

भारतीय सशस्त्र सेना ध्वज दिवस केवल एक तिथि नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा में अंकित वह आदरांजलि दिवस है जो वीरता, त्याग और कर्तव्य की सर्वोच्च परंपरा को स्मरण कराता है। यह उन अनगिनत सैनिकों को नमन है जिन्होंने अपने रक्त से इतिहास को गौरवान्वित किया, उन परिवारों के प्रति गहरी कृतज्ञता है जिन्होंने अपने प्रियजनों को मातृभूमि की सेवा में समर्पित किया, और आने वाली पीढ़ियों के लिए वह प्रेरणा है जो हमें सिखाती है कि राष्ट्रधर्म से बड़ा कोई कर्तव्य नहीं। 7 दिसंबर हमें याद दिलाता है कि स्वतंत्रता सहज उपहार नहीं, बल्कि सतत् जागरूकता, निरंतर सुरक्षा और अथक पहरेदारी का परिणाम है—और इस पहरेदारी के सच्चे प्रहरी हमारे अमर सैनिक हैं। यही ध्वज दिवस का सार है—सम्मान की भावना, सहयोग का संकल्प, और राष्ट्र के प्रति अटूट समर्पण की पवित्र प्रतिबद्धता।

   - प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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