जंगल से जुड़ती सड़कें: प्रगति और संरक्षण का मध्य प्रदेश मॉडल
[इको-हाईवे से इको-भविष्य तक: बाघों के साथ चलता भारत]
[प्रकृति के साथ प्रगति: भारत का पहला वन्यजीव-सुरक्षित राजमार्ग]
• प्रो. आरके जैन “अरिजीत”
भारत के हृदय में बसा मध्य प्रदेश आज विकास और संरक्षण के अद्भुत संतुलन की मिसाल बनकर उभर रहा है। यह वही भूमि है जिसे ‘टाइगर स्टेट’ के रूप में जाना जाता है, और जो अब बाघों के प्राचीन वन-पथों को सुरक्षित रखने की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठा रही है। यहां सड़कें केवल मनुष्यों की यात्रा का साधन नहीं रहीं, बल्कि जंगल के राजा को निर्बाध और सुरक्षित आवागमन का भरोसा भी देती हैं। देश का पहला राज्य-स्तरीय मल्टी-नेशनल पार्क टाइगर कॉरिडोर और भारत का पहला वन्यजीव-सुरक्षित राजमार्ग इस सोच को साकार करते हैं। ये पहलें केवल बढ़ती बाघ आबादी के संरक्षण का माध्यम नहीं हैं, बल्कि उस दूरदर्शी दृष्टिकोण का प्रतीक हैं जहां विकास और प्रकृति साथ-साथ चलते हैं, और इंसान व जंगल एक-दूसरे के सहयात्री बनते हैं।
मध्य प्रदेश में बाघों की दुनिया सदैव सशक्त और जीवंत रही है। कान्हा, बांधवगढ़, पेंच और पन्ना जैसे टाइगर रिजर्व राज्य की पहचान और गौरव हैं। लेकिन जैसे-जैसे बाघों की संख्या बढ़ी—2022 की गणना में 785 बाघों के साथ राज्य देश में शीर्ष पर रहा—वैसे-वैसे उनके सुरक्षित आवागमन की आवश्यकता और भी गंभीर हो गई। जंगल खंडों में बंट चुके हैं और राजमार्ग उन्हें चीरते हुए गुजरते हैं। ऐसे में हाल ही में घोषित टाइगर कॉरिडोर एक ऐतिहासिक पहल बनकर सामने आया है। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने अगस्त 2025 में 961 किलोमीटर लंबे चार-लेन कॉरिडोर की घोषणा की, जो कान्हा, बांधवगढ़, पन्ना और पेंच को आपस में जोड़ेगा। 5,500 करोड़ रुपये की यह परियोजना न केवल पर्यटन को नई ऊंचाई देगी, बल्कि सुबह कान्हा और शाम बांधवगढ़ में सफारी का सपना भी साकार करेगी।
लेकिन यह कॉरिडोर महज़ एक सड़क नहीं, बल्कि वन्यजीवन की जीवनरेखा है। दिसंबर 2025 में सार्वजनिक कार्य विभाग मंत्री राकेश सिंह ने घोषणा की कि मध्य प्रदेश देश का पहला राज्य-स्तरीय टाइगर कॉरिडोर विकसित कर रहा है, जो राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) और पीडब्ल्यूडी के सहयोग से बनेगा। इसमें वन क्षेत्रों में अंडरपास, धीमी गति वाले जोन और वन्यजीव-सुरक्षित डिजाइन शामिल होंगे। यह मल्टी-नेशनल पार्क कॉरिडोर बाघों की गति, पर्यटन और स्थानीय कनेक्टिविटी के बीच संतुलन साधेगा। इको-टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा, स्थानीय अर्थव्यवस्था सशक्त होगी और गांवों तक पहुंच सुगम बनेगी। यह गलियारा केवल बाघों के लिए नहीं, बल्कि हिरण, सांभर, जंगली सूअर और अन्य प्रजातियों के लिए भी सुरक्षित मार्ग बनेगा।
इसी दिशा में एनएच-45 पर विकसित भारत का पहला वन्यजीव-सुरक्षित राजमार्ग एक अनूठा प्रयोग है। भोपाल-जबलपुर को जोड़ने वाली इस सड़क का 12 किलोमीटर लंबा हिरन-सिंदूर खंड नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य और वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व से होकर गुजरता है। यहां 122 करोड़ रुपये की लागत से टेबल-टॉप लाल रोड मार्किंग्स लगाई गई हैं—जो भारत में पहली बार हैं। ये लाल पट्टियां ऊंची नहीं हैं, लेकिन इतनी उभरी हुई हैं कि वाहन स्वाभाविक रूप से धीमे हो जाते हैं। लाल रंग का चयन सोच-समझकर किया गया, क्योंकि यह तुरंत ध्यान आकर्षित करता है और चालकों को चेतावनी देता है कि वे वन्यजीव क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं। पारंपरिक स्पीड ब्रेकरों की तरह झटका नहीं लगता, बल्कि गति सहज रूप से नियंत्रित हो जाती है।
इसके साथ 25 वन्यजीव अंडरपास बनाए गए हैं, जिनसे जानवर सड़क के नीचे से सुरक्षित आवागमन कर सकें। दोनों ओर आठ फीट ऊंची लोहे की बाड़ लगाई गई है, जो उन्हें स्वाभाविक रूप से अंडरपास की दिशा में मार्गदर्शित करती है। छोटे पुलों पर लगाए गए कैमरे वन्यजीवों की गतिविधियों पर निरंतर नजर रखते हैं। मध्य प्रदेश में पशु-वाहन टक्करें एक बड़ी समस्या रही हैं—पिछले दो वर्षों में ऐसे 237 मामले दर्ज हुए, जिनमें 94 मौतें हुईं। ये आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि ऐसी पहल कितनी अनिवार्य थी। ग्रीन हाईवे पॉलिसी 2015 के तहत यदि यह प्रयोग सफल रहता है, तो इसे देशभर के जंगली राजमार्गों पर लागू किया जा सकता है।
ये पहलें केवल इंजीनियरिंग की उपलब्धि नहीं, बल्कि एक सोच का परिवर्तन हैं। जहां कभी विकास और संरक्षण आमने-सामने खड़े दिखते थे, आज वे एक-दूसरे के सहायक बनते नजर आ रहे हैं। बाघों की बढ़ती संख्या—जो अब 3,682 तक पहुंच चुकी है और विश्व की 75% आबादी का प्रतिनिधित्व करती है—इस बात का प्रमाण है कि 1973 से चला आ रहा प्रोजेक्ट टाइगर सफल रहा है। फिर भी चुनौतियां कम नहीं हैं। केवल 2025 में ही राज्य में 54 बाघों की मौत हुई, जो अब तक का सर्वाधिक आंकड़ा है। क्षेत्रीय संघर्ष, अवैध शिकार और कभी-कभी खनन परियोजनाएं अब भी खतरा बनी हुई हैं। इसके बावजूद, ये नए कॉरिडोर और सुरक्षित सड़कें भविष्य के प्रति आशा जगाती हैं।
स्थानीय समुदायों की भागीदारी इस प्रयास को और भी अर्थपूर्ण बनाती है। इको-टूरिज्म से रोजगार के अवसर सृजित होंगे और गांववाले ग्रीन कॉरिडोर के संरक्षक बनेंगे। बच्चे स्कूल जाते हुए लाल सड़क पर देखेंगे कि इंसान किस तरह जंगल के साथ सहअस्तित्व सीख रहा है। एक बाघ का सुरक्षित गुजरना केवल उसकी जान नहीं बचाता, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ करता है—क्योंकि जहां बाघ होते हैं, वहां जंगल जीवित रहते हैं।
यह कहानी केवल मध्य प्रदेश तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे भारत की है। यहां लाल रंग की सड़कें अब खतरे का नहीं, बल्कि जीवन का संकेत बन रही हैं। यहां टाइगर कॉरिडोर बाघों को नहीं, हमें यह याद दिलाता है कि हम प्रकृति के स्वामी नहीं, उसके मेहमान हैं। यदि इन पहलों को आगे बढ़ाया गया, तो आने वाली पीढ़ियां न केवल बाघों की दहाड़ सुनेंगी, बल्कि एक संतुलित और स्वस्थ दुनिया में सांस भी लेंगी। यह एक नई शुरुआत है—जंगल और सड़क का अनोखा संगम, जहां विकास की गति प्रकृति के साथ कदम मिलाकर आगे बढ़ रही है।
- प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)
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